भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 34 – अपमान की पीड़ा और यश का मूल्य
संस्कृत श्लोक:
अकीर्तिं चापि भूतानि
कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् |
संभावितस्य चाकीर्तिः
मरणादतिरिच्यते || 2.34 ||
अनुवाद:
सभी लोग तुम्हारे अपयश की कथाएं करेंगे, और वह अपकीर्ति सदा के लिए अमिट होगी। सम्मानित पुरुष के लिए अपयश मृत्यु से भी अधिक दुखद होता है।
1. भूमिका: आज के भारत में शौर्य, सम्मान और अपमान की परिभाषा
यह श्लोक सिर्फ युद्धभूमि के लिए नहीं है — यह हमारे जीवन की हर चुनौती से जुड़ा हुआ है। आज के भारत में जहां मीडिया, राजनीति, और सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों की प्रतिष्ठा क्षणों में बनती और बिगड़ती है, यह श्लोक बेहद प्रासंगिक हो जाता है।
2024 के लोकसभा चुनावों में जो दृश्य हम सभी ने देखा — जहाँ नेताओं के कथनों ने गरिमा की सारी सीमाएं लांघीं, वहां अर्जुन के मन की यही उलझन दिखाई देती है। एक योद्धा के लिए अपमान केवल व्यक्तिगत नहीं होता, वह पूरे समाज, परंपरा और कर्तव्य का अपमान होता है।
2. अपमान की धार – क्यों अर्जुन युद्ध से पलटना चाहता था?
अर्जुन का संकोच केवल युद्ध से नहीं था, बल्कि उस अपयश से था जो उसे युद्ध न करने पर प्राप्त होता। आज भी जब कोई व्यक्ति अपने दायित्वों से हटता है — चाहे वो एक शिक्षक हो, सैनिक हो, या एक माता-पिता — समाज उस पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
हमने देखा है, जब एक खिलाड़ी जैसे कि विराट कोहली का प्रदर्शन कुछ समय के लिए गिर जाता है, लोग उसके वर्षों के योगदान को भूलकर उसकी आलोचना शुरू कर देते हैं। अपमान की आग केवल बाहरी नहीं, भीतरी भी होती है — आत्मा को जलाने वाली।
3. सामाजिक प्रतिष्ठा: यश और कीर्ति का भारतीय परिप्रेक्ष्य
भारतीय संस्कृति में "यश" को केवल प्रसिद्धि नहीं, बल्कि नैतिकता और कर्तव्यबोध से जोड़ा जाता है। रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, या हाल ही में कश्मीर के शहीद मेजर सौरभ कालिया — इनके नाम आज भी इसलिए लिए जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने यश को अपमान के भय से ऊँचा रखा।
इस श्लोक में श्रीकृष्ण यह नहीं कह रहे कि अर्जुन को युद्ध करना ही चाहिए — वे उसे यह याद दिला रहे हैं कि अगर वह कर्तव्य से पीछे हटेगा, तो समाज उसे एक कायर कहेगा। वह अपमान उसकी आत्मा को जीवनभर तिल-तिल जलाएगा।
4. क्या आज भी अपयश मृत्यु से बुरा है?
इस सवाल का उत्तर हर व्यक्ति के अनुभव में छिपा है। एक पत्रकार के रूप में मैंने देखा है कि कैसे झूठे आरोपों से किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद हो सकती है।
2012 में दिल्ली के एक सरकारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लग गया था। बाद में वह निर्दोष साबित हुआ, लेकिन वह अपमान, वह तिरस्कार... उसकी आंखों से मैंने खुद देखा। वह कहते थे, "मौत बेहतर होती, कम से कम आत्मा तो शांति पाती।"
यह वही बात है जो गीता के श्लोक में छिपी है — सम्मान केवल दूसरों की नज़रों में नहीं, स्वयं की आत्मा में होता है।
5. कहानी
एक स्वतंत्रता सेनानी थे। ब्रिटिश हुकूमत में उन्होंने जेल काटी, लेकिन कभी समझौता नहीं किया। जब एक अफसर ने उन्हें कहा, "तुम्हारा यश तुम्हें रोटी नहीं देगा", उन्होंने उत्तर दिया — "पर मेरा सम्मान मेरे बच्चों को झुकने नहीं देगा।"
आज जब मैं उनके बारे में लिखता हूँ, तो गर्व होता है। उन्होंने इस श्लोक को जिया — अपमान से मृत्यु बेहतर मानी, लेकिन अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे।
6. आत्मग्लानि बनाम बाहरी आलोचना
हममें से अधिकांश लोग अपमान से अधिक आत्मग्लानि से पीड़ित होते हैं। हम जानते हैं कि हम बेहतर कर सकते थे, पर नहीं कर पाए। यह आत्मा की पुकार है — यही अर्जुन के भीतर था।
जब श्रीकृष्ण उसे समझा रहे थे, वे बाहर की बात नहीं कर रहे थे — वे अर्जुन के भीतर की वह लड़ाई जिता रहे थे, जो आत्मा और मन के बीच थी।
7. आज के युवाओं के लिए संदेश
आज की पीढ़ी सोशल मीडिया पर यश और अपयश के चक्रव्यूह में फँसी हुई है। एक टिप्पणी, एक ट्रोलिंग पोस्ट — और आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाता है।
इस श्लोक को समझना आज के युवा के लिए सबसे आवश्यक है। सच्चा यश आत्मा से आता है, और अपयश से लड़ने की शक्ति भी आत्मा से। यदि आप सही हैं, तो किसी के शब्द आपको परिभाषित नहीं कर सकते।
8. निष्कर्ष: कीर्ति की रक्षा क्यों जरूरी है?
किसी के चरित्र की सबसे बड़ी संपत्ति उसका यश होता है। यदि वह एक बार खंडित हो जाए, तो पुनः अर्जित करना कठिन होता है।
गीता हमें सिखाती है कि जीवन में हर कदम पर हमें चुनाव करना पड़ता है — सुविधाजनक मार्ग या सम्मानजनक मार्ग। यह श्लोक बताता है कि जो सम्मानजनक मार्ग छोड़ते हैं, उन्हें केवल बाहरी ही नहीं, भीतरी अपमान भी झेलना पड़ता है।
आह्वान:
क्या आप आज अपने जीवन में किसी चुनौती से भाग रहे हैं? क्या आप सोचते हैं कि अगर आप मौन रहें, तो अपमान से बच सकते हैं? इस श्लोक को याद करें:
“संभावितस्य चाकीर्तिः मरणादतिरिच्यते”
अपयश मृत्यु से भी बदतर होता है।
खुद से पूछिए — आप किसको बचा रहे हैं? अपनी सुविधा को या अपने यश को?
अब समय है कि आप अपने भीतर के अर्जुन को जगाएं — और अपने यश की रक्षा करें।
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स्रोत संदर्भ: bhagavad-gita.org – Shloka 2.34
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