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भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 29 - आत्मा का रहस्य और जीवन की सच्चाई






श्लोक 2.29: संस्कृत श्लोक और उसका हिंदी अनुवाद

अश्र्यच्यमेनं मन्ये यश्चैनं नुम्यते चापि, आश्र्यच्यवद्वचैनं अन्यः शृणोति, श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्।

अनुवाद: कोई इस आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है, कोई उसे आश्चर्य की तरह वर्णन करता है, कोई उसे आश्चर्य की तरह सुनता है, और फिर भी कोई-कोई उसे जान नहीं पाता।

आत्मा का रहस्य: क्यों कहते हैं इसे 'आश्चर्य'?

श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि आत्मा कोई सामान्य विषय नहीं है जिसे आसानी से समझा जा सके। यह न तो दिखाई देती है, न नष्ट होती है, न ही इसमें कोई विकार होता है।

एक बार मैं अपने कॉलेज में 'फिलोसफी ऑफ माइंड' का लेक्चर अटेंड कर रहा था। प्रोफेसर ने सवाल पूछा - "What is the self?" पूरी क्लास चुप थी। तब उन्होंने कहा - "जो आत्मा है, उसे हम सोचकर नहीं समझ सकते, उसे महसूस करना होगा।" उसी दिन पहली बार गीता की यह लाइन मेरे मन में गूंजने लगी थी - आत्मा को कोई जान ही नहीं पाता।

1. आत्मा को जानना आसान नहीं है

आधुनिक विज्ञान भी चेतना (consciousness) को पूरी तरह परिभाषित नहीं कर पाया है। लेकिन गीता हजारों साल पहले यह कह चुकी है कि आत्मा को 'देखा', 'सुना' या 'कहा' जा सकता है, पर पूरी तरह 'जाना' नहीं जा सकता।

2. अनुभव बनाम जानकारी

आप गंगा नदी के बारे में पढ़ सकते हैं, तस्वीर देख सकते हैं, लेकिन जब तक गंगा में स्नान नहीं करते, तब तक उसका अनुभव अधूरा रहता है। ठीक वैसे ही आत्मा के बारे में ज्ञान से ज़्यादा ज़रूरी है उसका आत्मानुभव।

3. क्यों आत्मा को 'आश्चर्य' कहा गया है?

  • क्योंकि यह कभी जन्म नहीं लेती और कभी मरती नहीं।
  • यह समय और स्थान से परे है।
  • इसे कोई हथियार काट नहीं सकता, कोई जल नहीं सकता।
  • यह शाश्वत और अपरिवर्तनीय है।

4. आधुनिक जीवन में आत्मा की समझ का महत्व

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, हम रोज़ चिंता, तनाव और भ्रम से गुजरते हैं। आत्मा की समझ हमें एक स्थायी और शांत केंद्र देती है, जहां हम लौट सकते हैं - चाहे जीवन में कितना भी तूफान हो।

व्यावहारिक दृष्टिकोण: आत्मा की समझ कैसे मदद करती है?

  1. तनाव में स्थिरता: जब आप जानते हैं कि आप शरीर नहीं बल्कि आत्मा हैं, तो मन के उतार-चढ़ाव से उतना प्रभावित नहीं होते।
  2. संबंधों में संतुलन: हम दूसरों को भी आत्मा के रूप में देखना शुरू करते हैं, जिससे क्रोध और द्वेष कम होता है।
  3. ध्यान और आत्मनिरीक्षण: आत्मा की खोज हमें ध्यान की ओर ले जाती है, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है।
  4. नैतिक निर्णय: जब आप आत्मा को पहचानते हैं, तो सही-गलत का निर्णय ज़्यादा स्पष्ट हो जाता है।

आत्मा और विज्ञान: क्या कोई संबंध है?

भले ही आत्मा को विज्ञान अभी तक माप नहीं पाया है, लेकिन वैज्ञानिकों ने चेतना को 'Hard Problem of Consciousness' कहा है। यानि ये वह सवाल है जिसका उत्तर विज्ञान के पास अभी नहीं है।

कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट मानते हैं कि चेतना केवल मस्तिष्क की उपज नहीं है, बल्कि उससे परे कुछ और है। यही वह बिंदु है जहाँ विज्ञान और सनातन धर्म का मिलन होता है।

कथा दृष्टांत: नचिकेता और यमराज

कठोपनिषद में नचिकेता आत्मा का रहस्य जानना चाहता है। यमराज उसे कई प्रलोभन देते हैं, लेकिन वह सिर्फ एक सवाल पर अड़ा रहता है - "मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है?" यमराज तब आत्मा के स्वरूप को बताते हैं - यह जन्म और मृत्यु से परे है।

आत्मा की अनुभूति के लिए 5 सरल अभ्यास

  1. प्रतिदिन 10 मिनट ध्यान करें - अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करें और 'मैं आत्मा हूँ' का चिंतन करें।
  2. मन को शांत करने वाले मंत्र पढ़ें - जैसे 'ॐ शांतिः शांतिः शांतिः'
  3. स्वस्थ और सात्विक आहार लें - क्योंकि शरीर माध्यम है आत्मा की अनुभूति का।
  4. गुड कर्म करें - अच्छे कार्य आत्मा की सहज पहचान को उजागर करते हैं।
  5. धार्मिक ग्रंथों का नियमित अध्ययन करें - जैसे भगवद गीता, उपनिषद आदि।

अनपेक्षित अंतर्दृष्टि: आत्मा को जानना क्यों मुश्किल है?

क्योंकि हम हमेशा बाहरी दुनिया में खोजते हैं - मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया। आत्मा को देखने के लिए हमें अंदर की ओर देखना होगा, और यह अभ्यास की माँग करता है।

हमारी शिक्षा प्रणाली भी हमें आत्मा के विषय में नहीं सिखाती। यदि स्कूलों में आत्मा, ध्यान और आत्मचिंतन जैसे विषय होते, तो दुनिया कितनी शांतिमयी होती!

निष्कर्ष: क्या आपने आत्मा को महसूस किया?

इस श्लोक के माध्यम से श्रीकृष्ण यह स्पष्ट कर देते हैं कि आत्मा कोई सामान्य वस्तु नहीं है। इसे जानना, समझना और अनुभव करना एक जीवन भर की यात्रा है। लेकिन यह यात्रा शुरू करना आज भी संभव है।

तो आज से आप क्या एक नई आदत शुरू करेंगे? क्या आप प्रतिदिन 5 मिनट आत्मचिंतन कर सकते हैं?

अगर हां, तो अपनी यात्रा को आज ही आरंभ करें। आत्मा की खोज ही सच्चा जीवन है।

जय श्रीकृष्ण!

यह भी पढ़ें: श्लोक 2.28 - आत्मा का आविर्भाव और तिरोधान

यह भी पढ़ें: श्लोक 2.27 - मृत्यु और पुनर्जन्म का रहस्य

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श्रीमद्भगवद्गीता पूर्ण ग्रंथ: holy-bhagavad-gita.org

गीता प्रेस गोरखपुर: Gita Press Official

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